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ऊधौ किनके भये हैं, मोहन माधव मीत।।
कपटी कुटिल बड़े निरमोही, जानै कहा रस-रीति।।
हमकों जोग, भोगकुबजा कों, वाही सों जोरी है प्रीति।।
‘चुन्नीलाल’ कहाँ लगि बरनौ, उनके गुनन के गीत।।