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होरी खेलत श्याम भवन में।
बृन्दावन सुखधाम जु कहिऐ, मचि रहौ फाग गलिन में।।
इत प्यारी उत कृष्ण मुरारी, नित नई चौप सखन में।
पिचकारिन झर ल्यावै साँवरौ, उड़त गुलाल गगन में।।
रंगी जुगल हरि रास रच्यौ है, राग होत हैं कुंजन में।
साँवरे रंग सुरंग रँगे अरु, झलकत अबीर करन में।।
ग्वाल बाल सब सखन संग लियें, सीतल होत तन मन में।
”चन्द्रसखी“ भजु बाल कृष्ण छबि, नँदलला है रँगन में।।