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आई गई सब, गोरी गोपाल बन°, छैला आजु होरी के खेल में।
सारी सुरंग पै केसरि रंग की, बूँद परै तौ कहा मन मोहै।।
एते पै लाल गुलाल मलौ मुख, या छबि कों बरनै कवि को है।
घेरि लिये चहुँ ओर सों ग्वालिनि, मानों मुनी बिच पींजरा सोहै।।