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हो होरी खेलन आईं, आजु आई।।
बरसाने मधुबन की नारीं, लाज छाँड़ि पति तजि तजि धाईं।।
करि सिंगार चल° ब्रज बनिता, चालि चलति गज गति हू लजाईं।
अंचल की ढालें मुख ऊपर, नैन की सैंननि बान चलाईं।।
इत गोपाल सखन सब सँग लियें, केसरि कुमकुम लियें हैं लुगाईं।
ऐसी भीर भई है परस्पर, नंद पौरि और जमुना के ताईं।।
गोकुल घेरि लियौ चहुँ ओरन, हरि पकरन की घात लगाईं।
ग्वाल बाल सब भये हैं दुचीते, ललिता पकरि हलधर जू कों लाईं।।
फगुआ देति लेति नहिं सुंदरि, विनती करत त्रिभुवन पति राई।
कोऊ सखी मिलि गुलचा मारै, अरू दोऊ हाथन हाहा खवाई।।
बड़े हो प्रवीन परे अबलनि बस, भूलि गये सिगरीं चतुराई।
‘सूर’ सखिन के जब बस परिगे, राम स्याम दोऊ आँखे अँजाई।।