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होरी कौ छैल मदमातौ डोलै।।
सुरँग गुलाल कुमकुमा भरि भरि, केसरि रँग लै बोरै।।
हों कैसे निकसों गैल सखी री, आय सुधाइ पकरि बहियाँ झकझोरै।।
‘चन्द्रसखी’ यह ढीठ महरि कौ, कंचुकी बन्द तकि तोरै।।