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मोहना मोहि आन ठग्योरी।।
सखि को रूप धर्यो नंद नंदन, आयो हमरी खोरी।
मैं जानों कोई नवल सुन्दरी, आई हमरी ओरी,
धायके चरण गह्योरी।।
चरण पखारि मंदिर लै आई, हँस हँस कंठ लग्योरी।
सुन्दर वरण मधुर स्वर सजनी, सुनि वश जिया भयोरी,
प्रेम तन ह्नै रही वोरी।।
मोहिं लिवाय गयो कुंजन में, कर छलबल बहु तोरी।
अकेली मोहिं जान मन मोहन, तन मन आन गहोरी,
ढीठ छलिया नँद को री।।
ऐसो री यह कुंज बिहारी, याते कोऊ न बच्योरी।
‘‘सूरदास’’ ब्रज की सखियन में, परमब्रह्म प्रगट्योरी,
धन्य जिन प्रेम कियोरी।।