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का संग फाग मचाऊँ सखीरी, कुबजा संग गिरधारी रहत हैं।।
अँसुवन को सखी रंग बनायो, दोऊ नैना पिचकारी रहत हैं।।
विरह में कल न परत पल छिनहूँ, व्याकुल सखियाँ सारी रहत हैं।।
निसदिन कृष्ण मिलन कों सखियाँ, आस लगाये ठाड़ी रहत हैं।।
”अफसोस“ पिया को नेह सुरतिया, निरखत नर और नारी रहत हैं।।