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कैसी करो )तु बैरिन आई।
बन बन बागन कोइल कुहकत, विरहा मदन चढ़ाई।
बोलत कोयल डार कदम्बन, पिया बिन कछु न सोहाई,
रैन सब सोचत जाई।।
सूनी सेज राति भई वैरिन, जियरा अधिक डराई।
हे घनश्याम हरो मम पीरा, पहले बाँह गहाई,
जात अब काहे छुड़ाई।।
फूले परास लगाई आग सी, कामिन जिय अधिकाई।
जित देखो तित सूनी लागत, को मोहि अंक लगाई,
रंग पिचकारी चलाई।।
”अमान सिंह“ अब मान छोड़के, आ घर कुंवर कन्हाई।
मो राधा की बाधा हरि ले, ताकों नन्द की दुहाई,
हँसत सब लोग लुगाई।।