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पूजन गौरि चलो सिय प्यारी।
संग सखिन के जनक नन्दनी, चली मुदित मन है फुलवारी।
गावत मंगल गीत मनोहर, पहिरे सवै सुरंग नई सारी।।
करि मणि जटित थार सुवरन के, दधि रोचन फल फूल सुपारी।
पूरण शशि सम प्रभा होत भई, जबहिं बाटिका सिय पगु धारी।।
तहाँ अचानक दृष्टि पर गये, श्री रघुराज धनुष कर धारी।
वरवस खिचो जात मन हरितन, देखि रूचिर बहु रूप महारी।।
एक एक ते कहति परस्पर, यह सांवल वर योग सिया री।
शंकर देखत ही मन मोहृौ, सुधि न जात कछु तन की संभारी।।