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होरी ख्ेलन के लियें नन्दलाल, मग नाचत आवत मटक मटक।।
कर ढपली गत मधुर बजावत, ताल देत पग पटक पटक।।
अंग अंग छवि कहाँ लगि बरनो, चढ़ोरी मदन को कटक कटक।।
‘नारायण’ मन हरत है मेरो, पेच पाग की लटक लटक।।