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मान न करि वृषभान किशोरी, कृष्ण कुंवर जी से खेलत होरी।।
नन्द नन्दन तेरे द्वारे ही आये, अबीर गुलाल लिये भर झोरी।।
ब्रहमादिक जाको पार न पावें, सनकादिक नहीं भेद लयो री।।
शेष सहस्त्र मुख जिव्या जपत है, सो हरि पकरि रहे कर जोरी।।
धन बृज भूमि ग्राम गोकुल धन, धन वृन्दावन धाम है बोरी।।
”ठन्डीराम“ सुख चैन से खेलो, धन्य राधे तेरो भाग्य बड़ोरी।।