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आज बृज खेलत होरी, राधे संग नन्दलाल।।
सुखमा सिन्धु नवल इत बनिता, उत गोकुल के ग्वाल।
कुसुम रंग अगनित पिचकारी, तैसें हीं उड़त गुलाल।।
इनकी पाग पिछौरी सुन्दर, उनकी चूनरि लाल।
क्षित जल धार वार यमुना की, तैसें हीं सरग पताल।।
बाजत चंग मृदंग झांझ ढ़प, मुरलि बीन करताल।
”किंकर“ हिय हरषत सुर बरषत, अरूण कुसुम्वी माल।।