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नन्द नदन वृषभानु कुंवरि सों, खेलत रंग रह्यो।
उड़त गुलाल कुमकुमा मानो, अंबर छाय रह्यो।।
अलि सुत युग वरण्यो वंकट छवि, जल सुत अधर लह्यो।
खंजन मीन मुक्ता हल राजत, मानो रबि रथ खैंचि रह्यो।।
गोपी ग्वाल सिमटि सब सुन्दर, सज्यो श्रृगांर नह्यो।
वरषत कंचन नीर कुसुम जल, मानो घन गरजि रह्यो।।
श्यामा-श्याम सवै सुखदाई, सुख सागर सगरौ।
”सूरदास“ प्रभु मिल्यो कृपा करि, जिन हृदये बिसरौ।।