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आयौ आयौ पिय )तु बसन्त, दंपति-मन सुख बिरह अंत।।
फागु खिलावहु संग कंत, हा हा करि तृन गहति दंत।।
तुरत गये हरि लै मनाय, हरषि मिले उर कंठ लाय।।
दुख डार्यौ तुरतहिं भुलाय, सो सुख दुहु के उर न समाय।।
);तु बसन्त आगमन जानि, नारिन राखी मान-बानि।।
‘सूरदास’ प्रभु मिले आनि, रस राख्यौ रति-रंग ठानि।।