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मोरे रंगभरी पिचकारी मारी, बाट चलत या अनोखे लला।।
कर जोरत रही पैंया परत रही, कोटि करी मनुहारी।।
नई रे कुसुम रंग चूनर मेरी, सास ननद देइगी गारी।।
‘‘रामप्रताप’’ अबहुं नहिं मानत, हँसत है दै दै तारी।।