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मोरे पिय को जोबनवा ढ़रकि जात, एहो कासें कहों मैं जिय की बात।।
सूनी सेजि पिया घर नाहीं, ता पर बिरहा लायो घात।।
सुख सपनें की संपति सजनी, नैन खुले नहिं आबै हाथ।।
गावे ‘‘गुदर’’ मोहि चैन न आवै, जब सें पिया तेरो बिछड़ो साथ।।