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काहे हमसों रूठे विधाता, गुण अवगुण के हो तुम दाता।।
तुमही एक अमर जग स्वामी, अरु सब झूँठ जगत कौ नाता।।
जन जन की चूक सदा प्रतिपालत, जिम बालक कों पितु अरु माता।।
गावें ‘गुदर ‘जन शोक निवारण, गुण अवगुण कर सब जग त्राता।।