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जिन मोरी वारे सौ वहियाँ गही, मैं तो उनहीं सों फाग मचाऊँगी।।
अंवा वौरे टेसू फले, फूली अंग ना समाऊँगी।।
वृन्दावन की कुंज गलिन में, कान्हा कां ढफ पै नँचाऊंगी।।