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नयनों के डोरे लाल, गुलाल भर खेली होली।।
जागी रात सेज प्रिय पति सँग, रति स्नेह रँग घोली।
दीपति दीप प्रकाश पुंज छवि, मंजु मंजु हँस खोली,
मली मुँख चुम्बन रोली।।
प्रिय कटि कठिन उरोज परस कस, कसक भसकि गईं चोली।
एक बसन रह गई मंद हँसि, दसन बसन अनबोली,
कली सी काँटे की तोली।।
मधु )तुराज मधुर अधरों की, पी मधु सुधि बुधि खोली।
खिले अलक मुंद गये पलक दृग, श्रम सुख की हद होली,
बनी रति सी छवि भोली।।
बीती रात सुजग बालों में, प्रातः पवन प्रिय डोली।
उठी सँभाल बाल मुँख लटपट, दीप बुझा हँसि बोली,
रही यह एक ठठोली।।