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सांवरे तोसों विनय हमारी।।
भस्मासुर वरदान पाइकें, मन में कपट विचारी।
भस्मासुर कों भस्म कियो तुम, पल में आइ मुरारी,
बिथा शिवजी की टारी।।
जनक नंदनी हरी लंकापति, मान कियो अति भारी।
रावण मारि गरद करि डारौ, सुवरण लंका जारी,
भई तिहुँ पुर उजियारी।।
दुष्ट दुशाशन चीर घसीटत, कृष्णा बेगि पुकारी।
नगन द्रौपदी काहू न देखी, अम्बर दियो है बिहारी,
दृष्टि करुणा सां निहारी।।
केशी मारौ, कंस पछारौ, पटक पूतना मारी।
लाज बचायो ‘‘जनार्दन प्रभु’’ की, चरण कमल बलिहारी,
टारियो बिपति हमारी।।