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फागुन मस्त महीना, पिया बिन धड़कत सीना।।
जब सें गए पिया छोड़ विदेशवा, जोवन अति दुख दीन्हा।
रहि-रहि अंगन पीर सतावत, रोम रोम रस भीना।।
जैसे चातक स्वाँति के जल बिनु, नीर बिना जैसे मीना।
जैसें नारी सेज पिया बिन, तन से उठत पसीना।।
जाके हाथ सब तरह बिकाने, लोक लाज तज दीना।
”बटुकनाथ“ ने कियौ क्या औगुन, जासें हमें तजदीना।।