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प्रीतम सुधि बिसराई, हमें ऐसी होरी न भाई।।
जैसे मीन बिना जल तड़पै, दे निज प्रान गँवाई।
तैसे बिन प्रीतम प्यारे के, मरिहौं हलाहल खाई,
विरह तन दीनों जराई।।
आधी रात कोयलिया बोले, कूक सही ना जाई।
भोर भुरारे पपिया बोले, हूक उठै अधिकाई,
देइ सब होश भुलाई।।
घर-घर सखियाँ मंगल गावें, फूलन सेज बिछाई।
मोहि बिन कंत बसंत न भायो, कासों कहूँ दुःख जाई,
बरै ऐसी होरी न भाई।।
कर-कर याद पिया अपने की, कामिन सुधि बिसराई।
प्रेमी कहै विरह व्याकुल तन, जोगिन भेष बनाई,
कहैं अँसुआ ढरकाई।।