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जुबनबा मद के भरे श्याम, आवेंगे कौन घरी।।
हमरी साखा सूखि रही है, किस विधि होइ हरी।।
नीर अथाह झाँझरी नैया, है मंझधार पड़ी।।
खेई है तो पार लगाइ दै, नहिं अब जात बही।।
सूर श्याम गहि वेग उबारौ, धीर न जात धरी ।।