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कासौं कहौं मैं जिय कौ हाल, मोहि कीन्ही साँवरिया ने बावरी।।
इक विरहा दूजैं लाज गुरूजन की, तीजैं मिलन कौं हौं आतुरी।।
विरह कौ सागर, सूझत नाहीं, मैं भईं हौं भँवरवा की नाव री।।
गावै ‘गुदर’ उर बसहु बिहारी, मोहि छवि लागत है रावरी।।