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आयौ बसंत कहौ उन हरि सों, बौरे अंब बन फूली है सरसों।।
फूले कमल उमगे दोउ जुबना, गयो चितचोर कहाँ या ब्रज सों ।।
औरन सों वे हँसत खिलत हैं, हम तरसें वाके दरसन बरसों।।
ऐसौ मन होय, छुड़ाय लाऊँ सजनी, मोहन प्यारे कों कुबजा के करसों।।
राह चलन दुर्लभ भयौ सजनी, अजहुँ न भेंट भई उन हरि सों।।