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कान्हा रे बरजि हारी तुमकों।
तुम तौ अपनी गरज के हौ यार, दरद नाहीं तुमकों।।
होरी खिलन कौं आईं राधा प्यारी,
ज्यां बादर की है लरज, गरजि रही बरसों।।
अबीर गुलाल के बादर छाये,
पिचकारिन भईं सरद, जरद भईं रँगसों।।
हमकों जोग भोग कुबजाकों,
होरी खेलौ सौतिनियाँ के संग, सरम नाहीं तुमकों।।