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श्री गणेश अहिवात दै हमकों, फागुन पिया सों मनावत री।।
सौने के छत्र धरों सिर ऊपर, धूप दीप हनवावत री।।
कंचन थार सुगन्ध बहुत लै, नित उठि देव मनावत री।।
‘दूलहदास’ कहत अबरी सुख, तेरौ ही यश नित गावत री।।