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काहे को मान करत जोबन को, खेलन निकसी होरी रे गुइयाँ।।
अपने री अपने मंदिर सों निकसीं, कोऊ साँवरि कोऊ गोरी रे गुइयाँ।।
भरि भरि मूठि गुलाल उड़ावति, सासु ननद की चोरी रे गुइयाँ।।
होरी कौ साज संग लिये डोलैं, खेलत में कहा चोरी रे गुइयाँ।।