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देखौ सखी कैसा ये देश निगोड़ा, सारे जग में होरी या ब्रज में होरा।।
फागुन मास लगौ कहा सजनी, डरपत है मन मोरा।
अपने जियकी कासों कहिए, तन पिचकारिन बोरा,
मदन जल में जमु वोरा।।
हों जमुना जल भरन जाति ही, देखि बदन मेरा गोरा।
मोसों कहत चलौ कुंजन में, तनिक-तनिक से छोरा,
डारि अँखियन में डोरा।।
जियरा देखि डरानौं री सजनी, लाज शरम की ओरा।
क्या बूढ़े क्या लोग लुगाई, एक सें एक ठिठोरा,
काहू सों काहू को जोरा।।
निपट निडर नन्द कौ री सजनी, चलत लगावत चोरा।
कहत ”गुमान“ सिखाय सखन मेरौ, सगरौ अंग टटोरा,
न मानत करत निहोरा।।