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बीती अवधि तेरौ खेल न हृ है, जुबना अकारथ काम न ऐहै।।
जो कछु रूप सँभारौ निहारौ, अंत समय फिर संग न जैहै।।
मिलन कों आईं संग सहेली, ऐसे पिया कों कौन मनेहै।।
गावें ‘गुदर’ पिया सासुरें जैहृ, नैहर में को पार लगैहै।।