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यह दिन चार बहार री, पिय सों मिलि गोरी।।
फिर कित तू, कित पिय किन फागुन, यह जिय माँझ बिचार।।
जोवन रूप नदी बहती यह, लै किन पाँव पखार।।
‘हरिचँद मति चूक समय तू, करि सुख सों त्यौहार।।