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अरी उठि देखि सखी, होरी मचि रही तेरे द्वार।।
दधि-सुत-वाहन दृग करि गामिनि, सर-सुत सौ मुख सार।।
वीर, अनुज टेरत है ताकों, उर भरि लियें साथ अपार।।
गुर को आदि लाल पट पूरण, लै प्रीतम मुख डार।।
हरि-भोजन तब दोय पै आवै, ताहू में दिन गये चार।।
‘नारायण’ हाटक तजि सजनी, भृम कौ रंग विहार।।