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जसुदा तेरौ कान्ह चबाई।।
मैं जमुना जल भरन जाति ही, घर में जानि धराई।
पात पात कर घर मेरौ ढूँढौ, सीकें को माखन खाई,
बँधीं मेरी धेनु छुड़ाईं।।
दधि की मटुकिया धरी सीकें पै, दाबि ढाँकि धरि आई।
उन हरवाइ उतारि लई रे, खाइ परी सो खाई,
बची अँगना लुढ़काई।।
मैं दौरी दरवाजौ घेरौ, घेरौ बनाइ बनाई।
मैं अपने बस पकरि लिये हैं, उन चतुराई चलाई,
नैन बिच प्रीति लगाईं।।