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अँगिया ना छुऔ, मैं तौ करोंगी कपोलनि लाल।।
यह अँगिया नहिं धनुष जनक कौ, छुअत टूटौ ततकाल।
यह अँगिया नहिं नारि गौतम की, परसि उड़ी ततकाल।।
कहा रे विलोकत भृकुटि कुटिल करि, नहिं पूतना की खाल।
यह अँगिया कालिय जिनि जानों, जाहि नथ्यौ तत्काल।।
गिरिवर उठाय भये गिरिधारी, नाहि जानों नन्दलाल।
जाऔ जी खाऔ सुदामा के तन्दुल, माखन चोर गँवार।।
इतनी सुनि मुसिकाय साँवरे, लीन्हों है अबीर गुलाल।
‘सूर स्याम’ मुसिक्याय साँवरे, सखियन कीन्हों है निहाल।।