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सखी देखौ आयौ है जुलमी फगुनवा, कब हुइ है हमरौ गवनवा।।
सब सखियाँ मिलि रंग मचावति, अपने री अपने भवनवा।
गाइ बजाइ लाइ पिय कों उर, खेलत सबही जहनवा।।
हम बिरहिन पछितात रैन दिन, बैठति उठति अंगनवा।
लालन आवन मदन सतावत, मानत नाहीं जुवनवा।।