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चहुं दिसि धूम मची है, हो हो होरी सुनाय।।
जित दैखौ तित एक यही धुनि, जगत रह्यौ बौराय।।
उड़त गुलाल चलत पिचकारी, बाजत ढफ घहराय।।
‘हरीचंद’ माते नर-नारी, गावत लाज गँवाय।।