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पिय मनमोहन के संग, राधा खेलत फाग।।
दोउ दिसि उड़त गुलाल अरगजा, दोउन उर अनुराग।।
रँग-रेलिनि झोरी झोलनि में, होत दृगन की लाग।
‘हरीचंद’ लखि सो मुख शोभा, अयन सराहत भाग।।