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यह न चीर की चोरी, सम्हरि नेंक खेलियो होरी।।
ना यह शंख-दलन छिति-धारन, दसन-सिंधु झकझोरी।
ना प्रहलाद उबारन, मारन हिरनाकुस-उर कौरी,
नवल जिहिं कपट छल्यौ री।।
ना हम वीर सूर क्षत्री तन, जिन हित परसु धरौ री।
ना दसकंध अंध कामातुर, सकुल सपुत्र नस्यौ री,
तनिक प्रभु भौंह मरोरी।।
ना यह घट झटकन अटकन मग, दधि पटकन बरजोरी।
भाजि चलन हँसि मिलन उमँग अँग, दृग मटकन मुख मोरी,
नचन छबि काम करोरी।।
हम अबला अतुलित बल गिरिधर, भली रची विधि जोरी।
यह संयुग निरखै हँसि ‘किंकर’ हरसि बहोरि बहोरी,
प्रेम रँग बहत हियौ री।।