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श्यामा श्याम सों होरी, खेलत आजु नई।।
नन्दनंदन कों राधे कीन्हों, माधव आपु भईं।
सखीं सखा भईं, सखा सखी भए, जसुमति भवन गईं।।
गोरे स्याम साँवरी राधा, यह मूरति चितई।
बाजत ताल मृदंग झाँझ ढ़प, नाचत हैं थेई थेई।।
पलटौ रूप देखि माधव कौ, जसुमति चकित भई ।
‘सूर’ स्याम कौ वदन विलोकत, उघरि गई कलई।।