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धरैं शीश रँग भरीं मटुकियाँ, फिरहिं बाल ब्रज की गोरी रे।।
लेहु री लेहु आनि कोऊ गोरस, गुप्त कियें पट में रोरी रे।।
गहक बार मन मोहन रसिया, आप गये तिनकी ओरी रे।।
दान दिये बिन जान न पैहौ, बेचि गईं केतौ चोरी रे।।
माँड़ि मंजु मुख मुखहिं मलायौ, बालम की चोरा चोरी रे।।
आँख अँजाय चले नंदनँदन, कहत फिरत हो हो होरी रे।।