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आज सदा शिव खेलत होरी।
जटा जूट में गंग विराजति, अंग विभूति रमौरी।।
वाहन बैल ललाट चन्द्रमा, मृगछाला उर ओरी,
नाग गल सों लपिटौ री।।
अद्भुत रूप उमा लखि धाईं, सँग लिये सखियाँ करौरी।
हँसि मुस्काति लजात चन्द्रमा, ठाड़ी करति बरजोरी,
मलति हर के मुख रोरी।।
गणन संग गणपति उठि धाये, लै गुलाल भरि झोरी।
लै पिचकारी सनमुख डोलें, घूमि घूमि चहुं ओरी,
रंग कौ मेह बरसौ री।।
कहै ‘हरि चरण’ सती-शंकर कौ, को गुण बरनि सकै री।
शेष गणेश नारद अरू शारद, सबै सि( इक ठौरी,
भई तिनकी मति बौरी।