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जिनि जाउ री आजु कोऊ पनियाँ भरन,
ठाड़ौ मग में कान्ह मारत पिचकारी तकि तकि।।
मैं तो बगदि आई दूरि सों लखि कें,
पट घूँघट की ओट करि करि।
सीस घुमन लागौ पिंडुरी कँपन लागीं,
हियरा करन लागौ न्यारौ धक धक।।
जाय चाहै ताकों मन बस करि लेय,
तारी बजावै गारी बकि बकि।।
जौ लौं फागुन यही ढँग रहिहै,
बैठि रहेंगी ब्रजनारीं थकि थकि।।