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कैसें रोकत कन्हैया मोहि बार-बार,कहा तुम ही रँगीले बहार यार।।
माखन खबैया दधि के चुरैया, दैया मुख देखत पट टार टार।।
‘श्यामसुन्दर’ तोरी कहूँगी जसोदा जी सों, मारूँगी गुलचा चारगाल।।