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सखि कछु जतन करौरी, स्याम पनघट अटक्यौ री।।
उठि प्रभात घट लै जमुना तट, भरि कर नीर धरौ री।
झपट झटक झटपट चट नटखट, गहि महि दै पटकौ री,
बहुरि हँसि दृग मटकौ री।।
आई अब होरी रँग बोरी, मेरे जिय खटकौ री।
ना जानूँ ‘किंकर’ का करि है, मेरे हित हटकौ री,
चुनरी रँग चटकौ री।।