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साँवरौ मोहि दै गयौ गारी।।
गारी दै पिचकारी मारी, भींजि गई मोरी सारी।
अबीर गुलाल मल्यौ मेरे मुख पै, ऐसौ अनौखौ खिलारी,
भयौ सखि स्याम बिहारी।।
लपटि झपटि बहियाँ गहि लीनी, भरि पिचकारी मारी।
भींजि गई अँगिया अरु सारी, ऐसौ ढीठ खिलारी,
सखी हाहा करि हारी।।
‘कृष्णरसिक’ सों विनती करति हों, कीजो कृपा बिहारी।,
अबकी फाग खेलौ मो सों तुम, राखौ भरम हमारी,
वृन्दावन चन्द बिहारी।।